Sunday, December 11, 2011

शाख की "गुलाब"

सुनो...!!
मेरी दास्तान का
उरोज था...
तेरी
नरम पलकों की छांव में .,..!!!
मेरे साथ था
तुझे जागना...
तेरी आँख कैसे झपक गई....???

तुम मिले भी तो
भला क्या मिले...?
वही दूरियां
वही फासले....!!!

न कभी
हमारे कदम बढे
न कभी तुम्हारी
झिझक गई.....!!!

तेरे हाथ से
मेरे होंठ .....तक
वही इन्तेजार की प्यास है....!!!

मेरे नाम की जो
शराब थी ...
कही रास्ते में छलक गई....!!!
तुझे
भूल जाने की कोशिशे....
कभी
कामयाब न हो सकी..!!!

तेरी याद
शाख की "गुलाब" है...
जब
हवा चली ,
लहराई
और.....

"महक"  गई........!!!

Monday, December 5, 2011

अजब पागल सी लड़की है...!!!(चौथी किस्त)

अजब पागल सी लड़की है
दिसम्बर
जब भी आता है
वो पगली फिर से 
 बीते  मौसम को याद करती है....


पुराने कार्ड पढ़ती है 
कि जिसमे 
उसने लिखा था
मै लौटूंगा  दिसम्बर में....!!!

नए कपडे बनाती है...
वो सारा  घर 
सजाती है ...
दिसम्बर के 
हर एक दिन को 
वो गिन गिन के
बिताती है
जूं ही १५
गुजरती है 
वो कुछ कुछ टूट जाती है
मगर फिर भी
पुरानी एल्बम खोल के
माझी को बुलाती है

नहीं मालूम ये उस को 
कि बीते वक्त की
ख्वाहिशें ...
बहुत तकलीफ देती है ...
मगर वो नादान
महज दिल को जलाती है ....!!!

यूँ ही 
दिन बीत जाते है....
दिसम्बर लौट जाता है...!!!
मगर
वो खुशफहम लड़की 
दुबारा से  कलेंडर में 
दिसम्बर के पन्ने को
नाजुक ऊँगली से मोड़कर

फिर से दिसम्बर के 
ख्याल  में डूब जाती है
कि आखिर उसने  लिखा था ...

"मै लौटूंगा दिसम्बर में....!!!"

अजब पागल सी लड़की है...!!!