सुनो...!!
मेरी दास्तान का
उरोज था...
तेरी
नरम पलकों की छांव में .,..!!!
मेरे साथ था
तुझे जागना...
तेरी आँख कैसे झपक गई....???
तुम मिले भी तो
भला क्या मिले...?
वही दूरियां
वही फासले....!!!
न कभी
हमारे कदम बढे
न कभी तुम्हारी
झिझक गई.....!!!
तेरे हाथ से
मेरे होंठ .....तक
वही इन्तेजार की प्यास है....!!!
मेरे नाम की जो
शराब थी ...
कही रास्ते में छलक गई....!!!
तुझे
भूल जाने की कोशिशे....
कभी
कामयाब न हो सकी..!!!
तेरी याद
शाख की "गुलाब" है...
जब
हवा चली ,
लहराई
और.....
"महक" गई........!!!
मेरी दास्तान का
उरोज था...
तेरी
नरम पलकों की छांव में .,..!!!
मेरे साथ था
तुझे जागना...
तेरी आँख कैसे झपक गई....???
तुम मिले भी तो
भला क्या मिले...?
वही दूरियां
वही फासले....!!!
न कभी
हमारे कदम बढे
न कभी तुम्हारी
झिझक गई.....!!!
तेरे हाथ से
मेरे होंठ .....तक
वही इन्तेजार की प्यास है....!!!
मेरे नाम की जो
शराब थी ...
कही रास्ते में छलक गई....!!!
तुझे
भूल जाने की कोशिशे....
कभी
कामयाब न हो सकी..!!!
तेरी याद
शाख की "गुलाब" है...
जब
हवा चली ,
लहराई
और.....
"महक" गई........!!!
सुनो..
ReplyDeleteमैं कहा सोई थी..
मैं तो बस आंखे बंद किये..
बेठी थी..!!
बेठी थी ..बस तुम्हे ही सोच कर..
तुम्हारे काँधे पे सिर रख कर..
की तुम पास हो मेरे... साथ हो मेरे...
बेठी थी . सारे गम भुला कर..!!
सुनो..
ReplyDeleteमैं कहा सोई थी..
मैं तो बस आंखे बंद किये..
बेठी थी..!!
बेठी थी ..बस तुम्हे ही सोच कर..
तुम्हारे काँधे पे सिर रख कर..
की तुम पास हो मेरे... साथ हो मेरे...
बेठी थी . सारे गम भुला कर..!!
सुन्दर कविता, पढ़कर आनन्द आ गया।
ReplyDeleteतेरे हाथ से
ReplyDeleteमेरे होंठ .....तक
वही इन्तेजार की प्यास है....!!!
Very touching.....!
http://bulletinofblog.blogspot.com/2011/12/17.html
ReplyDeleteaapki yah rachna pustak mein li jaye to koi aapatti?
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
मेरी टिप्पणी कहाँ गयी ? स्पैम में देखिएगा
ReplyDeleteवाह!!!!!!!!!!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत.....
वाकई...
वाह ..बहुत बढिया।
ReplyDeletebehad bhaawpurn evam komal ehsaas ke
ReplyDeletesath likhi gai ye rachna man ko chooti hai...!
लिंक गलत देने की वजह से पुन: सूचना
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
बहुत सुन्दर भावमयी रचना....
ReplyDeleteबेहद सुंदर भावों से सजी खूबसूरत प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत खूब ... सूखी प्यास जैसे पानी को तरस रही है ...
ReplyDeleteशब्दों से जादूगरी की है आपने ...
बहुत खूब
Deleteवाह बेहद खूबसूरत रचना !
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteman ke bhaavon ko sundarta se piroya hai.
ReplyDeleteshubhkamnayen
bahut sundar abhivykti hai
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