Thursday, December 5, 2013

सुनो ....!!! ऐ मोम की गुड़िया .....!!!

सुनो ....!!!

ऐ मोम की गुड़िया ...

कि अब इस दौर के अंदर
कोई मजनू नहीं बनता
कोई राँझा नहीं होता ...!!!

कदम दो-चार चलने से
सफ़र साझा नहीं होता
""लानत " इन बेकार सोचों पर ...!!!

सुनो ..
रोने का डर ..कैसा ...?
जिसे पाया नहीं  तुमने ..
उसे खोने का डर ..कैसा ...??

सुनो ....!!!

ऐ मोम की गुड़िया .....!!!