Saturday, February 26, 2011

बताओ कैसा लगता है ...?

बताओ कैसा लगता है ...?
किसी को
पाके खो देना...?
किसी के
साथ तो चलना ...
मगर उसका
न हो पाना....?
खुद को
कोसते रहना.....!!!
मगर
उसको ना कुछ कहना..
खुद ही
गिरना... संभलना...?
हँसना और
रो देना
बताओ
कैसा लगता है...?
खिजा की सख्त सर्दी में
हिज्र की
लम्बी रातों में
किसी की याद में रोना
किसी को
सोचते सोचते
अपनी आँखें
बंद करना....?
और
अंधेरों में चले जाना ..
बताओ
कैसा लगता है.....? 
नयी जगहों
में रंग जाना
मगर किसी को ना भूल पाना
बताओ...?
कैसा लगता है...????

Wednesday, February 23, 2011

फासला

वो तुझसे मिलके
हश्र में,
पूरी ना हो  जाये कहीं....?
थोड़ी सी है कमी
जो...
 मेरे गुनाह में......!!!
साफ कह दे
मुझसे
अगर गिला कोई है...?
"फैसला"
हमेशा फासले से...
बेहतर ही होता है....!!!

उससे कहना

"खुशी मिली तो..... कई दर्द मुझसे रूठ गए...
यारो दुआ करो कि मैं...फिर से उदास हो जाऊं..."

~~~उसकी उदासी मेरी कमजोरी है.....~~~

सुना है अब कि......
वो उदास रहता है.....
उससे कहना कि ओ
उदास ना हो
क्योकि.....
उसकी उदासी के साथ
उसकी आँखें भी नम सी लगती है.....!!!

उसके होंठ भी
चुपचाप से लगते है......
उसके ए चुप होंठ
और नम आँखें........
मेरी कमजोरी हैं........!!!!!

उससे कहो
....
वो उदास ना हो.....
वो जो चाहती है
मुझ से ले ले.....
बेशक चाहे मुझे ना मांगे....

अपने मनपसंद साथी का संग मांग ले.....!!!!!!!

क्यूंकि .... .

उसकी उदासी मेरी कमजोरी है....!!!

Tuesday, February 22, 2011

!!...मोहब्बत...!!









..!!...मोहब्बत...!!

मोहब्बत
दिल पे दस्तक देती है....!!

बदन को
रूह का रास्ता
दिखाती है....!!!


मोहब्बत
एक दुआ है
हमेशा
साथ रहती है....!!!

मोहब्बत
ठंडी छाँव है
जो सहरा के
सफ़र में काम आती है...!!!

मोहब्बत
उसका पल्लू है
जहाँ
उम्मीद ने कुछ
अल्फाज बांधें हैं...!!!

मोहब्बत
उसकी आँखें हैं
कि जिनमें
ख्वाब उगते हैं

मोहब्बत
उसका चेहरा है
कि जिसकी तह में
रखे ..दिल में
ख्वाहिश सांस लेती है......!!!

मोहब्बत ...दिल पे... दस्तक देती है...!!

अजब पागल सी लड़की है....!!


अजब पागल सी लड़की है....!!

मुझे हर रोज कहती है......
बताओ ..... कुछ नया लिखा...?

मैं जब भी उस से कहता हूँ...
कि हाँ...एक कविता लिखी है...
मगर शीर्षक ...देना बाकी है.....!!!

बहुत बेचैन होती है......
वो कहती है सुनाओ..
मैं इसे अच्छा सा शीर्षक दूंगी.....!!!

ओ मेरी कविता सुनती है
और उसकी बोलती आँखे...
किसी मिसरे कि किश्ती पे
यूँ मुस्कुराती हैं.....
मुझे लफ्जो कि किश्ती टूटती महसूस होती है.....!!!

वो मेरी कविता को एक
अच्छा सा शीर्षक देती है.....!!!

और इसके आखिरी मिसरे के पीछे..
एक अदा ....एक मासूमियत से..,
वो अपना नाम लिखती है.......!!!

मैं कहता हूँ
सुनो......!!
ए कविता मेरी है फिर.....
तुम्हे क्यूँ अपने नाम से मशहूर करना है......?

मेरी ऐ बात सुनकर
उसकी आँखें मुस्कुराती हैं...
और कहती हैं.....
बड़ा सादा सा रिश्ता है.......

"कि जैसे तुम मेरे हो....
...ए कविता भी भी तो मेरी है......!!"

अजब पागल सी लड़की है.....!!!