सुनो ....!!! ऐ मोम की गुड़िया .....!!!
सुनो ....!!!
ऐ मोम की गुड़िया ...
कि अब इस दौर के अंदर
कोई मजनू नहीं बनता
कोई राँझा नहीं होता ...!!!
कदम दो-चार चलने से
सफ़र साझा नहीं होता
""लानत " इन बेकार सोचों पर ...!!!
सुनो ..
रोने का डर ..कैसा ...?
जिसे पाया नहीं तुमने ..
उसे खोने का डर ..कैसा ...??
सुनो ....!!!
ऐ मोम की गुड़िया .....!!!
No comments:
Post a Comment