बाहर
तन्हाई की हवा होगी......
बेरहम वक्त की फिजा होगी....
कौन डालेगा
तेरे प्यार का
दाना हमको..... ???
दाना हमको..... ???
तुझसे मिलेगा
न मिलने का बहाना हमको.......
दिन कहा गुजरेगा
उसकी खबर ही नहीं....
कैसे गुजरेगी रात ....???
अपना तो कोई घर घरनहीं..........
बस
यही सोच के
दिल को समझाते है अक्सर ....
"हम
तेरी याद के
पिंजरे में कैद पंछी...""
तुम मेरी याद में कैद नहीं. हो..
ReplyDeleteमें खुद ही तुम्हारी याद में कैद हूँ ...
अगर चाहोगे तो भी तुम्हे नहीं जाने दुगी...
मन के पिंजरे को कभी खली नहीं होने दुगी....
जोड़ कर रखुगी तुम्हे. खुद से...
तुमको खुद से न खोने दुगी....
समझे मेरे पंछी.......:)
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ReplyDeleteसुमन जी...नमस्कार....आपने तो कविता का रूख ही मोड़ दिया...लगता है कुछ नया लिखना पड़ेगा...आपकी मेहरबानी का शुक्रिया अदा करते हुए....!!!
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