Saturday, March 26, 2011

" रात के मुसाफिर...."


 
 
 " रात के मुसाफिर...."

मैं रात का...
...मुसाफिर हूँ...
रात का.......!!!

मैं क्या करूँ...?
कोई मुझे बताये...
कोई तो समझाए...
एक पल कभी चैन ना आये
तवज्जो तुझ से हटती नहीं....!!
 
 कैसी आदत है  
  जो छूटती नहीं 
 दिन तो
 गुजर ही जाता है
 कामो में बंट जाता है
 दर्द-ऐ-दिल भी घट जाता है ....!!!

 
लेकिन
रात का क्या करूँ...?
एक सफ़र है ए
मीलो का सफ़र
कभी
ना ख़तम होने वाला सफ़र
कोई रहगुजर नहीं
सुकून भी मयस्सर नहीं .....!!!

मुझे यूँ लगता है जैसे
तू मेरे करीब है....!!!

लेकिन ......!!!

ये कैसा फरेब है ...?
आँखों में तू है
धडकनों में तू है
मेरी साँसों में तू है
एक
सुकून ही नहीं
मयस्सर....!!!

कैसा है ऐ सफ़र
एक तन्हा मुसाफिर
जिसकी कोई मंजिल नहीं ...
कोई हासिल नहीं

मैं तो
यही समझता रहा
कि मैं..... अकेला हूँ
तन्हा हूँ
लेकिन ये क्या ...?
मेरे पास तो तू है ....!!
तू है....!!

तू है तो क्या है...?
तू भी तो वही है ..!!!
जो मैं हूँ...!!

एक दूजे से बेखबर....
हम दोनों

"रात के मुसाफिर...."
 
 

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