...लूडो....!!!
ये जो
सांप - सीढ़ी का खेल है
अभी साथ थे
दोनों हम नवा....
वो भी १ पे
मै भी १ पे ....
उसे सीढ़ी मिली वो चढ़ गई
मुझे रास्ते में डस लिया
मेरे वक्त के किसी सांप ने ....!!!
बड़ी दूर से
पड़ा लौटना
जख्म खाके अपने नसीब का
वो ९९ पे
पहुच गई
मै दस के फेर में
घिर गया...!!
उसे १ नंबर था चाहिए
जो नहीं मिला ..सो नहीं मिला..
मै बढ़ा तो बढ़ता
चला गया
बस एक चौके की मात थी ...!!!
पर उसे जीतना मेरी जीत थी
उसे हारना मेरी मात थी
मैंने जान के
गोट गलत चली
और सांप के मुंह में दाल दी ...!!!
ये जो प्यार है
कभी सोचना ........
ये भी
"सांप-सीढ़ी का खेल है......!!!
बहुत बढ़िया.....
ReplyDeleteप्रेम का सुन्दर प्रतीकात्मक चित्रण...
अनु