Monday, February 11, 2013

एक जरा सी रंजिश से .....!!!

एक जरा सी रंजिश से .....
शक की ज़र्द टहनी पर  .....
फूल बदगुमानी  के ....
इस तरह से खिलते हैं ....

जिंदगी से प्यारे भी ....
अजनबी से लगते हैं .....!!!

गैर  बनके मिलते हैं ....
दोस्तदार लहजों में ....
सलवटें सी पड़ती हैं .....!!!

उम्र भर की चाहत का  ....
आसरा नहीं मिलता ...
दहशत -ऐ - बे यकीनी में
रास्ता नहीं मिलता .....!!!!
फूल रंग वादों की
मंजिले सिकुड़ती हैं ....!!!

राह मुड़ने लगती है ....
बेरुखी के गारे से ....
बे दिली की मिटटी से .....
फासलों की ईंटों  से ...
ईंट  जुड़ने लगती है ....!!!

खाक उड़ने लगती है ...
वहमों के सर्द साए से .....
उमर भर की मेहनत को ...
पल में तोड़ जाते हैं ...!!!
.
भीड़ में ज़माने की ..
साथ छोड़ जाते हैं ....
एक जरा सी रंजिश से ....
साथ छोड़ जाते हैं ...!!!

ख्वाब टूट जाते हैं ......!!!

2 comments:

  1. ओह , सत्य को कहती बहुत संवेदनशील रचना

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  2. रंजिशें पालें ही क्यूँ....
    बात मोहब्बत की तो कोई बात बने.....

    सुन्दर रचना..

    अनु

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