शब्द मेरे .. : ...कविता उसकी ...!!!
कहा था ना ..?
मुझे एक ख्वाब रहने दो
...कहा था ना ..?
कहा
था ना ..?
मुझे एक ख्वाब रहने दो ...
कहा था ना ..?
बहुत ही शौक था तुमको
..
हमारा दिल दुखने का ...
मुसलसल चोट की ज़द पर ,
हमें तकसीम करने का ...??
हमें मिटटी बना के
रेत में तज्सीम करने का ..?
चलो खुश हो गए न अब ?
तुम्हे अपना समझने की ...
जो गलती हम ने की थी न ..
बहुत है अब ...!!!
बहुत तकलीफ़
दी है
दुनिया वालों ने ..
बहुत ही चोट खाई है
ज़माने से ..
मगर हम भी अजब थे
ना ..?
किसी के चैन की खातिर ...
सुकून अपना लुटा बैठे ...
किसी की ख्वाहिशों
को
हमने ..इतना जाना कि ..
गुरूर अपना मिटा बैठे ....!!!
चलो अच्छा हुआ
..
खुशफहमियों का
सिलसिला टूटा ...!!!
थकान जो है
गुजरते वक्त के संग ...
ख़तम हो
जाएगी ..
हाँ हम वक्त के साथ टूट जाते हैं
मगर तोडा नहीं करते ...
कि हमने बद
-दुआ देना नहीं सीखा ...!!!
बस दुआ ये है कि
तेरा सामना न हो ...
किसी के साथ
मुझ सा बुरा न हो ...!!!
बहुत मासूम थे न हम ...?
कहा था ना ...?
मुझे एक ख्वाब रहने दो ...???
ढल ही जाएगी
मगर हम भी अजब थे न ...???
सुंदर लेखन |
ReplyDelete“सफल होना कोई बडो का खेल नही बाबू मोशाय ! यह बच्चों का खेल हैं”!{सचित्र}
वाह, बहुत ही सुंदर भाव और सशक्त अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteरामराम.
Sundar rachna
ReplyDeleteअच्छी कविता
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